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यस आई एम—13 [मर्डर बाय लीच]

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वह अनजान शख्स स्वर्णा और वैदिक को लेकर सीधा हॉस्पिटल पहुंच गया। वहां जाते ही सामने बैठे कंपाउंडर को देखते ही बोला। "इमरजेंसी है!" उसके इतना कहते ही वहां पर एक नर्स आ गई। वह उस शख्स के पास आते हुए बोली। "ओके डॉक्टर मुर्दुल!" 

नर्स के मुंह से डॉक्टर सुन कर वैदिक हैरानी से शख्स की ओर देखने लगा। खुद को देखता हुआ पाकर मुर्दूल बोला। "ये सब बाद में बता दूंगा। पहले काउंटर पर जाकर फॉर्म फिल कर दो।"

मुर्दुल के कहने पर नर्स स्ट्रेचर लेकर वहां पर आ गई। वैदिक ने अपनी गोद से स्वर्णा को उतार कर स्ट्रेचर पर लेटा दिया और नर्स उसे ऑपरेशन थिएटर में ले गई। जिसके पीछे पीछे मुर्दुल चला गया। उसके जाने के बाद वैदिक काउंटर पर फॉर्म भरने लगा और फॉर्म भरने के बाद सीधा ऑपरेशन थिएटर के बाहर पहुंच गया।

ऑपरेशन थिएटर के बाहर की लाइट जल चुकी थी। जिसे देखकर वैदिक की धड़कनें भी बढ़ने लगी। वह बैचेनी में वह इधर उधर टहलने लगा। कभी वह वहां पर बनी हुई डैस्क पर बैठ जाता तो कभी ऑपरेशन थिएटर के बाहर आ कर दरवाजे को देखने लगता। उसका यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहा।

वह भगवान से मन ही मन प्रार्थना करते हुए बोला। "हे प्रभु! मेरी बीवी और बच्चे दोनों को सही सलामत रखना।" कह कर उसने हाथ जोड़ लिए।

एक एक पल काटना उसके लिए मुश्किल भरा हो रहा था। आखिर में वह जाकर डेस्क पर बैठ गया। तभी ऑपरेशन थिएटर का गेट खुला और मुर्दुल मास्क उतारता हुआ बाहर आ गया। उसका चेहरा उतरा हुआ था। जिसे देखकर वैदिक की सांसे रुक गई और घबराहट के मारे उसका बुरा हाल हो गया। वह मुर्दुल के पास जाते ही बोला। "मुर्दुल! मेरी स्वर्णा और मेरा बच्चा ठीक है क्या?" कहते ही उसकी आंखो में पानी आ गया। 

"वो.." कहकर मुर्दुल रुक गया और फिर आगे बोला। "आपकी बेटी उल्टी हुई थी। जिस वजह से हमें ऑपरेशन करना पड़ा और आपकी बीवी को बहुत पैन झेलना पड़ा।"

"मेरी बीवी को कुछ नही होना चाहि।" वैदिक की आवाज में दुःख और गुस्सा साफ झलक रहा था।

"अरे! पहले पूरी बात तो सुन लीजिए। आपकी बीवी और बेटी दोनों सही सलामत है।" मुर्दुल रुका और आगे बोला। "जाकर मिल सकते हो उनसे।" इतना सुनते ही वैदिक ऑपरेशन थिएटर के अंदर चला गया। 

स्वर्णा बेड पर लेटी हुई थी और उसी के पास उसकी बेटी भी थी। दोनों को देखकर वैदिक के चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी। उसने पहले स्वर्णा के माथे को चूमा और अपनी बेटी को गोद में उठा लिया। खुशी के मारे वैदिक की आँखें भर आई और उसने अपनी बेटी को गले से लगा लिया। 

तभी उसका फोन बजने लगा। उसने बड़े प्यार से अपनी बेटी को स्वर्णा के पास लेटाया और फोन पर बात करने लगा।

"ओके सर!" कहकर उसने फोन काट दिया। उसके चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी। वह खुश होते हुए बोला। "स्वर्णा! अवर डॉटर इस सो लकी फॉर अस।"

"क्या हुआ वैदिक? तुम इतना खुश क्यों हो रहे हो?" स्वर्णा ने चकित होते हुए पूछा।

"स्वर्णा! मुझे जॉब मिल गई। कम्पनी ने मेरे वर्किंग एक्सपीरिएंस को देखकर मुझे एडवांस में सैलरी दी है।"

"बधाई हो। तुमने सही कहा था कि भगवान के यहां देर है अंधेर नही। मेरी बेटी सच में हमारे लिए लकी साबित हुई।" कहकर स्वर्णा ने अपनी बेटी का माथा चूम लिया। 

मुर्दुल भी वहां पर आ गया। वह वहां पर आते ही बोला। "क्या बात है! बेटी को गोद में लेकर बड़ा चहक रहे हो।"

"हां!" वैदिक ने कहा जिसके चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी। वह आगे बोला। " मेरी बेटी के पैदा होते ही मेरी जॉब लग गई।"

"ये तो खुशी की बात है। फिर तो इस बात पर दावत होनी चाहिए।" मृदुल ने खुश होते हुए कहा और फिर आगे बोला। "सबसे जरूरी बात, भाभी को अभी यही रहना है कुछ दिन।"

"क्यों नही जरूर दावत मिलेंगी और क्या बात है स्वर्णा भाभी भी बन गई।" कहकर वैदिक हँसने लगा।

"भाभी का नाम तो पता चल गया। अब भाई अपना नाम भी बता ही दीजिए।" मुर्दुल ने वैदिक को छेड़ते हुए कहा।

"वैदिक!" स्वर्णा ने जवाब दिया।

"जब मेरे घर वालों ने भी हमारा साथ नहीं दिया। तब आप मेरे लिए फरिश्ता बनकर आए। भगवान आपको हमेशा खुश रखें।" वैदिक ने भावुक होते हुए कहा।

"अरे अरे! डॉक्टर और इन्सानियत के नाते ये मेरा फर्ज था और अब तो हम दोस्त भी बन गए है।" मुर्दुल ने हँसते हुए कहा। तभी उसका फोन बजने लगा। फोन के दूसरी ओर से उसकी बीवी चिल्लाते हुए बोली। "कहां रह गए हो? अभी तक घर नहीं आए।"

"वो मेरे दोस्त की बीवी प्रेग्नेंट थी। उसकी डिलीवरी करने लगा था।" मुर्दुल ने मासूम बच्चे की तरह जवाब दिया। जिसे देखकर वैदिक और स्वर्णा हँसने लगे। उन दोनों को हंसता हुआ देख मुर्दुल बोला। "बीवी के सामने सबका ये ही हाल होता है।" कहकर उसने मुंह बना दिया।

"वो हमें रहने के लिए घर देखना था।" वैदिक ने कहा।

"देख लेंगे! कुछ दिन तो यही रहना है। आज आराम करो और भाभी को टाइम दो। कल घर भी देख लेंगे।" मुर्दुल ने हँसते हुए कहा। जिसे देखकर वैदिक और स्वर्णा भी मुस्कुरा दिए।



लड़की ने अब तक उस सुनसान इलाके को पार कर लिया था। तभी उसकी नजर एक बोर्ड पर पड़ी। उसे देखते ही उसके चेहरे पर एक शातिर मुस्कान तैर गई। वह आस पास बनी हुई घास में कुछ ढूंढने लगी। तभी उसकी नजर घास में पड़ी हुई ढ़ेर सारी झोंक पर पड़ी। वह इतनी देर से उन्हें ही ढूंढ रही थी। उस चीज को देखकर उसके चेहरे के भाव बदलने लगे। उसने पास में रखा हुआ लकड़ी का डब्बा उठाया और सारी झोंक को उसमें भर दिया और कुछ ही पलों में वह खुद वहां से गायब हो गई।



"जीजी! खाने में क्या बनाना है?" लक्षिता ने सुनंदा से पूछा।

"कुछ भी बना लो।" सुनंदा ने जवाब दिया और खुद भी रसोई में आ गई। सुनंदा सब्जी बनाने लगी और लक्षिता आटा गूथने लगी। अपना काम करके दोनों वहां से चली गई और थोड़ी देर बाद वापिस भी लौट आई। दोनों ने मिलकर खाना बनाया और उसे ले जाकर डायनिंग टेबल पर रख दिया।

उन दोनों के पति भी वहां पर आ गए। सभी बैठ कर खाना खाने लगे और आपस में बात करने लगे।

"कल मिश्रा जी के बेटे का जन्मदिन है।" सुमित ने कहा। इतना सुन कर सभी के चेहरे उतर गए। जिसे उसने भांप लिया। दोनों भाईयों में से किसी के पास भी बच्चा नहीं था। अब उन्हें यही लग रहा था कि जो उन्होने वैदिक और स्वर्णा के साथ किया था, ये उसी का ही नतीजा था।

"हमें भाई साहब और भाभी से जाकर माफी मांग लेनी चाहिए?" अनुज ने खाना खाते हुए पूछा और बाकि तीनों की ओर देखने लगा। सामने से जवाब ना पाकर उसने दोबारा फिर पूछा। दोबारा पूछने पर बाकी सकपका गए। उन्हें देखकर ऐसा लगा मानो वे गहरी नींद से जागे हो।

"ठीक है।" सुमित ने ठंडे लहजे में जवाब दिया और दोबारा खाना खाने लगा।

"कल जाकर मांग लेंगे।" सुनंदा ने कहा और कुछ सोचते हुए अपने पेट पर हाथ फिराने लगी। सभी ने खाना खाया और सीधा सोने चले गए।



लड़की ने बचते बचाते हुए गांव में प्रवेश किया और आखिरी छोर पर बने हुए घर के पास पहुंच गई। वह पेड़ो की आड़ में छिप कर उस घर को देखने लगी। जिसे देखकर उसके चेहरे पर खतरनाक भाव आने लगे। उस ने ध्यान से देखा तो पाया कि सुनंदा और लक्षिता रसोई में थी। वह वहां से गई और घर के पिछले हिस्से में चली गई। जहां पर एक दरवाजा बना हुआ था। लड़की ने अपनी आँखें बंद कर ली। थोड़ी देर बाद उसके दिमाग से अदृश्य किरणे निकलने लगी। जो घर के पिछले दरवाजे से होते हुए सीधा रसोई में चली गई।

लड़की को घर का पूरा भाग साफ साफ दिखाई दे रहा था। अदृश्य किरणें कान से होते हुए सुनंदा के दिमाग में प्रवेश करने लगी। वह बिना किसी भाव के लक्षिता को बोली। "मुझे कुछ काम है। थोड़ी देर में आती हूं।" कहकर वह वहां से चली गई।

वह किसी यंत्रचलित मशीन की तरह चलते हुए घर के आंगन में पहुंच गई और वहां से सीधा गलियारे से होते हुए कमरें में जा पहुंची। वह बेड के पास बनी हुई दराज में कुछ ढूंढने लगी। तभी उसका हाथ दराज में किसी चीज से टक्करा गया। उसने उसे बाहर निकाल लिया। उसके हाथ में कांच की एक छोटी सी सीसी थी जिसमें नींद की दवाई थी। उसने उसे अपने हाथ में लिया और वहां से सीधा रसोई में चली गई और उसने वहां जाकर लक्षिता को खाना बनाने के लिए कहा और फिर दोनों खाना बनाने लगी। दोनों ने खाना बनाया और वहां से खाना लेकर जाकर सीधा गलियारे में रखी हुई डायनिंग टेबल के पास पहुंच गई। चलने से पहले सुनंदा ने रसोई की खिड़की खोल दी थी और कांच की सीसी को वही पर रख दिया। सुनंदा खाना डायनिंग टेबल पर लगाने लगी और लक्षिता वहां से चली गई।

लड़की रसोई के पास बनी खिड़की के पास आई और वहां पर रखी हुई सीसी से नींद की दवाई निकाल कर खाने में मिलाने लगी। खाने में दवाई मिलाने के बाद वह छिप गई। सुनंदा वहां पर आई और बचा हुआ खाना वहां से ले गई। लड़की ने उसके दिमाग से अपना संपर्क तोड़ दिया। लक्षिता तब तक दोनों भाइयों को बुला कर ले आई। लड़की छिप कर उन लोगों को ही देख रही थी। सभी ने खाना खाया और उन्हें थोड़ी देर बाद नींद का नशा होने लगा। खाना खाने के बाद सभी ने अपने झूठे बर्तनों को उठाया और फिर सोने चले गए।

अपने अपने कमरे में जाने के बाद लड़की के चेहरे के भाव बदलने लगे। वह खिड़की के रास्ते से अंदर आई और साथ ही बॉक्स को भी अंदर ले आई। अंदर आते ही उसने पहले प्लेट में खाना डाला और डाल स्लैप पर ही बैठ कर खाना खाने लगी। 

"बड़े सालों बाद इतना अच्छा खाना खाया।" उसने स्वाद लेते हुए कहा और फिर खाना खाने लगी। खाना खा कर उसने अपनी प्लेट को सिंक में डाला और गलियारे, आंगन को पार कर सीधा सुनंदा और सुमित के कमरे में चली गई। दोनों सो रहे थे। लड़की सीधा उनके पास चली गई और जाते ही उसने बॉक्स खोल दिया। उसमें से एक एक कर जोंक बाहर निकलने लगी और दोनों पति पत्नी के ऊपर चढ़ने लगी। 

जब आधी जोंक बाहर आ गई। लड़की ने बॉक्स को बंद कर लिया। थोड़ी ही देर में उन दोनों के शरीर पर जोंक ने कब्जा कर लिया। और उनका खून चूसने लगी। थोडी ही देर में उन दोनों का शरीर सफेद पड़ गया। जोंक ने उनके शरीर से कतरा कतरा खून का चूस लिया था। लड़की उन दोनो के शरीर को देखते हुए श्लोक पढ़ने लगी।



"नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत॥"



"जब खून के रिश्ते ही अपने ना रहे तब उनके शरीर से एक एक बूंद खून निकाल लेनी चाहिए।" लड़की ने बड़े खतरनाक ढंग से अपनी बात कही और वहां से दूसरे कमरे में चली गई। जो उसने पहले कमरें में किया था वही उसने दूसरे कमरे में भी किया और वहां से इस तरह से गायब हो गई मानो कभी वहां पर आई ही ना हो।



सुबह का समय था। गांव के सभी लोग अपने अपने कामों में लग गए लेकिन उस घर में से कोई भी बाहर नही आया क्योंकि रात के वक्त लड़की ने सभी को मौत के घाट उतार दिया था। इस बात से पूरा गांव अनजान था। गांव का एक लड़का घर में गया और वहां जाकर घर के सदस्यों को ढूंढने लगा। पर उसे वहां पर कोई भी दिखाई नही दिया। किसी के ना मिलने पर वह सीधा कमरें में चला गया। जहां इस वक्त अनुज और लक्षिता की लाश पड़ी हुई थी। जो पूरी तरह से सफेद पड़ चुकी थी। लाश को देखकर वह बुरी तरह से घबरा गया। और जोर जोर से चिल्लाने लगा। उसकी आवाज सुन कर गांव के बाकि के लोग भी वहां पर आ गए।

लाशों की हालत देखकर सभी की आँखें खुली की खुली रह गई। गांव की भीड़ में से एक बुर्जुग वक्ति बाहर आया। वह लाशों को देखते हुए बोला।

"इनका खून जोंक ने पिया है।" वह कुछ देर रुका और फिर आगे बोला। "पर इतनी सारी जोंक आई कहां से?"

"ताऊ जी! इनका घर जंगल के पास भी तो है।" लड़के की बात पर सभी ने सहमति जताई। उस कमरे के बाद सभी दूसरे कमरे में चले गए। वहां पर सुमित और सुनंदा की लाश पड़ी हुई थी। गांव वालों ने चारों लाशों को उठाया और उनका अंतिम संस्कार कर दिया।

★★★

जारी रहेगी...मुझे मालूम है आप सभी समीक्षा कर सकते है, बस एक बार कोशिश तो कीजिए 🤗❤️

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2 Comments

hema mohril

25-Sep-2023 03:27 PM

Amazing

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Arman

29-Jan-2022 06:23 PM

Ab tak ki kahani kafi advenchar bhari rahi h, abhy aur lekhika ki story bhi mast h, age dekhte kya h story me khas, vaise bhi aap bahut achcha likhti h

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